Wednesday, June 23, 2010

बासी रोटी




उठ बे कलुआ चल करघे पर
काम नहीं करना है का
रेज़ा कैसे पूरा होइये
ढरकी नहीं फेंकना का
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जब देखो तब गुल्ली डंडा
खेलो कब्रिस्तान में
मुर्दे साले खाना देहिये
मुझको ही मारना है का
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कलिये गए रहे कोठी पर
स़उआ बोला आओ कल
कल तो अब कलिये अइहे
भूखो ही मरना है का
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कैसी है अंधेर की नगरी
सब का भाव बरोबर है
नकली माल बिक़े असली पर
यही हमें बिनना है का
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साव गिरस्ता खाय अमरिति
जोलहा ताके टुकुर-टुकुर
बासी रोटी मिले चाय संग
और हमें मिलना है का
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